Ravan 2.0 जलाओ! – इस दशहरे समाज के असली राक्षसों को भी मारो

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

हर साल दशहरे पर हम राम-रावण की लड़ाई की याद में रावण दहन करते हैं। लेकिन अब सवाल ये है कि क्या केवल पुतला जलाने से बुराई खत्म हो जाती है?
या फिर बुराई ने अब रूप बदल लिया है – Facebook Comments में नफरत बनकर, ऑफिस में भ्रष्टाचार बनकर, या हर गली में चुप्पी बनकर?

आज के रावण कौन हैं?

“पुराने रावण के दस सिर थे, आज के रावण के दस चेहरे हैं।”

  1. भ्रष्टाचार (Corruption) – जो सरकारी दफ्तरों से लेकर निजी कंपनियों तक फैल गया है।

  2. जातिवाद और धर्म के नाम पर नफरत – जो सोशल मीडिया और रैली दोनों में नज़र आता है।

  3. महिलाओं के खिलाफ अपराध – जो घर से लेकर सड़क तक मौजूद है।

  4. साइलेंस – जब गलत हो रहा हो और हम चुप रहते हैं।

  5. आलसीपन और लापरवाही – अपने कर्तव्य से भागना भी एक आधुनिक रावण है।

  6. झूठी शान और दिखावा – इंस्टाग्राम लाइफ, रियलिटी से कोसों दूर।

  7. ऑनलाइन ट्रोलिंग और साइबरबुलीइंग

  8. पर्यावरण की अनदेखी – हम पुतला जलाते हैं लेकिन पेड़ नहीं लगाते।

  9. फेक न्यूज़ – जो समाज को ज़हर की तरह बाँट रही है।

  10. ईगो और मैं ही सही का घमंड

बुराई जलाओ, लेकिन धुएं में आँखें मत बंद करो

हर साल हम ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ का जश्न मनाते हैं, लेकिन

क्या हमने अपने भीतर के रावण को पहचानने की कोशिश की है?

हम सड़क पर पुतला तो जलाते हैं, लेकिन खुद सड़क पर कूड़ा फेंकते हैं।

हम राम का नाम लेते हैं, लेकिन दूसरों से वैर पालते हैं।

दशहरा का असली संदेश क्या होना चाहिए?

विजयदशमी का मतलब सिर्फ जीत नहीं, बल्कि विचारों की सफाई भी है।

दूसरों की नहीं, अपनी बुराइयों पर विजय पाना

झूठ को ना कहना, और सच का साथ देना

हर वर्ग, हर धर्म, हर जाति को बराबरी की नजर से देखना

महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों और प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना

रावण जलाने से पहले चेकलिस्ट बना लो!

“आज मैंने किसी को जाति या धर्म से नहीं तौला?”
“क्या मैंने अपने घर की महिला की इज्ज़त वैसे की जैसे बाहर भाषण में करता हूं?”
“क्या मैं किसी को ऑनलाइन ट्रोल नहीं कर रहा?”
“क्या मैं अपने पड़ोसी से सिर्फ वोट बैंक के चश्मे से नहीं देखता?”
“क्या मैंने इस साल कोई पेड़ लगाया?”

अगर इनका जवाब “हां” है,

तो आप असली दशहरा मना रहे हैं।

आख़िरी शुभकामना एक नई सोच के साथ

“इस दशहरे पर पुतलों के साथ-साथ अपने अंदर के अंधकार को भी जलाएं। नफरत, घमंड, आलसीपन और चुप्पी – सबका दहन करें, तभी होगा सच्चा ‘विजय’।”

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